मन तो मन है। कभी डगमगाता है तो कभी चट्टान की तरह खड़ा हो जाता है। कभी आसमाँ के तारे तोड़ने की सोचता है तो कभी ताश के पत्तों की तरह ढह जाता है। मन के जंची तो भयंकर पसीने से भीगा शरीर भी मुस्कुराता हुआ दौड़-धपाड़ कर लेगा और नहीं जंची तो पंचमेवे की मिठाई को भी नकार देगा। भक्ष्याभक्ष्य के मानक मन ही स्थापित करता है
कुछ लोग ताजिन्दगी मन का मैल मन में ही रखते हैं कुछ लोग मन में अद्भुत विचारों को सजा कर रखते हैं। कुछ लोगों का मन कहीं उलझ जाता है तो सुलझने का नाम नहीं लेता, और कुछ लोगों का मन एक बार सुलझ जाता है तो मजाल है दुनियां की कोई ताकत उसको उलझा दे।
मन कच्चा है तो फौलादी मांसपेशियां भी कुछ नहीं कर पायेगी, और मन मजबूत है तो उखड़ती स्वांसों में भी प्राण भर आता है।
जीवन में सबकुछ मनभाया हो, ऐसा सदैव होता नहीं है। सुख और दुःख जीवन के दो शाश्वत अनुभव है लेकिन संसार में इन दोनों का मनगढन्त रूप ज्यादा प्रचलन में है।
एक मन कहता है मैं अपने सारे अवसर खो चुका हूँ दूसरा मन कहता है जो जीवन इतने अवसर खोकर भी टिक गया वह अवसरों के भरोसे थोड़े ही जीता है।
एक मन कहता है मुझे दुनियां ने धोखे ही धोखे दिए हैं तो दूसरा मन कहता चलो, अब बहुतेरे धोखेबाज मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। मैं अधिक अनुभवी हूँ।
एक मन कहता है "मैं जिन्दगी में इससे भी ज्यादा पाने का हकदार था" दूसरा मन कहता है "अगर पहली बात सच रही है तो अभी भी तुम उसी प्रकार के हकदार हो"
एक मन अक्सर अपनी खराब आदत के अनुसार हर चीज़ को पाने खोने का एहसास करता हुआ दुःखी और खुश रहने का दिखावा करता है तो दूसरा मन दुःखी दिखता हुआ भी नीले आकाश के नीचे स्थित हर चीज़ को जीने का साधन समझता है ना कि जीवन का उद्देश्य; तो उसके सुखों का अनुभव आप उसके जैसा बनकर ही कर सकते हैं।
सन्त कबीर ने सभी ग्रंथों का सार कितने सरल शब्दों में रख दिया।
मन के मते न चलिए, मन के मते अनेक,
जो मन पर असवार है, सो साधु कोई एक।।
मन को रोजाना नहलाये। मन की अद्भुत सत्ता संसार के संपर्क में आकर मैली ज्यादा होती है। मन के घोड़े पर आप सवार है, और लगाम आपके हाथ में है तो आपका गंतव्य तक पहुंचना तय है।
✒️अर्जुन सिंह साँखला, प्राचार्य, लक्की इंस्टिट्यूट, जोधपुर।
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